Thursday, November 11, 2010

राणा चन्द्र सिंह : पाकिस्तान के केसरिया ध्वज के संवाहक


हनुमान सरावगी










        यह कथा एक ऐसे शिखरपुरुष की है जिस पर धरती मां को गर्व का  अनुभव होगा.आइये चलते हैं उस स्वर्णिम अतीत की और-त्रिशूल अंकित केसरिया ध्वज लहरा रहा था.लोग नारे लगा रहे थे-हिन्दू पार्टी जिंदाबाद! राणा चन्द्र सिंह जिंदाबाद! अनेक लोग राणा चन्द्र सिंह को छठी बार चुनाव जीतने की बधाई देने के साथ-साथ उन्हें पुष्पमालाओं से लाद रहे थे. राणा चन्द्र सिंह का चेहरा अलौकिक आभा से दीप्त हो रहा था-

राणा चन्द्र सिंह

          बहुतों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह दृश्य पाकिस्तान का था. उसी वर्ष हिन्दू पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में राणा चन्द्र सिंह पाकिस्तान राष्ट्रीय असेम्बली के सदस्य छठी बार निर्वाचित हुए थे.
राणा हमीर सिंह
         हिन्दू पार्टी की स्थापना अमरकोट रियासत(पाकिस्तान) के राणा चन्द्र सिंह ने की है.यह पार्टी पाकिस्तान की राष्ट्रीय और प्रांतीय असेम्बलियों के चुनाव त्रिशूल अंकित केसरिया झंडा ले कर लडती है.श्री सिंह पूर्ववर्ती पाकिस्तान मंत्रिमंडलों में पहली बार उप सींचाई  मंत्री,दूसरी बार रेवेन्यू मिनिस्टर और तीसरी बार नारकोटिक्स कंट्रोल मिनिस्टर रहे.पाकिस्तान के हिन्दुओं में उनकी लोकप्रियता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे ६ बार लगातार राष्ट्रीय  एसेम्बली  के चुनाव में भारी  मतों से विजयी रहे. हिन्दू पार्टी पाकिस्तान में हिन्दुओं के लिए सुरक्षित सीटों के लिए चुनाव लड़ती है और इन सीटों पर चुनाव के लिए पकिस्तान के समस्त हिन्दू चाहे वे पकिस्तान में कहीं भी रहते हों अपने मतों का प्रयोग कर सकते हैं.
       राणा चन्द्र सिंह के पुत्र हमीर सिंह ने सिंध असेम्बली का चुनाव दो बार सर्वाधिक मत प्राप्त कर जीत चुके हैं. प्रथम बार जब हीर सिंह ने चुनाव जीता था तब उनको साइंस एंड टेक्नोलोजी  मिनिस्टर बनाया गया था. 
        जरा चलते हैं, राणा चन्द्र सिंह के दरबारे आम में- प्रात: काल से ही पकिस्तान के दूरदराज इलाके से अपना दुःख-दर्द लिए,अपनी समस्याएँ ह्रदय में धारण किए जुट गए हैं. उनकी पिली,नीली,लाल पगड़ियों से पूरा लॉन भर गया है.तय समय पर राणा चन्द्र सिंह का दरबार में प्रवेश होता है-उपस्थित भीड़ प्राणवंत हो उठती है. लोगों के सामने एक अनूठा व्यक्तित्व खड़ा है-रोबदार चेहरा....गठीला बदन...स्नेह भारी आँखें...राजस्थानी शान वाली मूंछें....शौर्यपूर्ण आभामंडल से दीप्त व्यक्तित्व,किन्तु नम्रता और सहृदयता की प्रतिमूर्ति हैं वे....लोग कह उठते हैं-राणा जी प्रणाम!! 
        एक सिलसिला शुरू हो जाता है, सबके दुःख-दर्द सुनने का. सबकी समस्याएं समझने का और फिर जारी होता है रणजी का निर्देश जिसे उनके सचिव करीने से नोट करते जा रहे हैं...और शुरू हो जाती प्रवावी कार्यवाही.
        समस्याएं व्यक्तिगत हों या पूरे हिन्दू समाज की, राणा चन्द्र सिंह उन समस्याओं के निदान के लिए तुरत सक्रीय हो जाते हैं. उनकी इसी लगनशीलता ने उनको पाकिस्तान के हिन्दुओं की आँखों का तारा बना दिया है.
       राणा चन्द्र सिंह का पारिवारिक इतिहास बहुत उल्लेखनीय है. अविवाजित भारत में ५६२ देशी रियासतें थीं, उनमें से एक अमरकोट रियासत भी थी. राणा चन्द्र सिंह के पूर्वजों ने हजारों वर्ष तक इस रियासत पर राज किया और वे शौर्य और वीरता के लिए विश्व में प्रसिद्द रहे. 
        मुग़ल काल की बात है- शेरशाह सूरी ने अपने प्रक्रम से मुग़ल काल की नींव हिला डाली थी. हुमायूँ की दिल्ली पर शेरशाह सूरी का कब्जा हो गया था. हुमायूँ अपने रानी बेगम हमीदा बानो और कुछ सैनिकों के साथ दिल्ली से किसी तरह निकल पाया था. शेरशाह के प्रभाव के कारण हुमायूँ को किसी राजा ने अपने यहाँ आश्रय नहीं दिया था.हुमायूँ की बेगम गर्ववती थी. हुमायूँ बहुत चिंतित और हताश हो कर अमरकोट की और चल पड़ा. उस समय अमरकोट में राणा प्रसाद का राज था.राणा प्रसाद ने उनको अपने रियासत में हुमायूँ को आश्रय दिया.उनके ही महल में बेगम हमीदा बानो ने अकबर को जन्म दिया, जो बाद में भारत का सम्राट बना.
       बेगम हमीदा बनो गर्वावस्था में घोड़े पर स्वर हो कर लम्बी यात्रा करने और फिर अकबर को जन्म देने के बाद अस्वस्थ हो गयी थी. राणा प्रसाद ने अकबर की देख-भाल के लिए अपनी पुत्री आसलदे को भेजा. आसलदे ने अकबर को जन्म घुंट्टी पिलाई. उसका प्रारंभिक लालन-पालन किया. 
      अकबर को यह  बात मालूम थी कि मुसीबत के दिनों में हिन्दू राणा ने उसके पिता को आश्रय दिया  और उनकी पुत्री आसलदे ने उसे मातृवत स्नेह दिया. उसे जम घुंट्टी पिलाई.उसे अपनी गोद में लोरियां सुना सुना कर सुलाया और जीवन प्रदान किया. बचपन कि इसी घटना ने अकबर को महान बनाया. उसके ह्रदय में गंगा -जमुनी संस्कृति कि नीव डाली. उसकी आत्मा को सर्वधर्म समभाव की राह पर लाया. बाद में राणा की बेटी आसलदे का विवाह जयपुर के तत्कालीन राजा पृथ्वी सिंह के पांचवे पुत्र जगमाल सिंह के साथ हुआ.जब अकबर हिंदुस्तान कि सल्तनत पर बैठा तो वह जगमाल सिंह और  आसलदे से मिलने गया.उन्हें सम्मान के साथ भेंट दी और वह आजीवन जगमाल सिंह को बाबा ही कह कर संबोधित  करता था. 
         जगमाल सिंह और आसलदे के पुत्र खगराजी बहुत ही वीर रणबांकुरे थे. उनहोंने अपनी और वीरता और मेहनत के बल पर जयपुर के निकट जोबनेर राज की स्थापना की.  आसलदे का समाज में बहुत सम्मान था. उनकी स्मृति जोबनेर की रेलवे स्टेशन का नाम जोबनेर आसलपुर रखा है. 
        लोक गीतों में  आसलदे अभी भी मातृत्व, ममता और स्नेह की देवी मणि जाती है.उनके बारे में अनेक किम्वदंतियां भी प्रसिद्द हैं. आसलदे और अकबर के बीच  का स्नेह सम्बन्ध हिन्दू-मुस्लिम एकता और भारत की संस्कृति के नए आयाम का कारण बना. इस देश की संस्कृति और समाज ने विभिन्न जाति,धर्म एवम मतों की सहभागिता की एक स्वर्णिम परंपरा का अभ्युदय हुआ. 
       राणा चन्द्र सिंह का देश के बंटवारे के बाद भी भारत से रोटी-बेटी का सम्बन्ध बना रहा है. श्री सिंह का विवाह रावतसर राजघराने के प्रमुख श्री तेज सिंह रावत रानी लक्ष्मी कुमारी चुडावत की पुत्री सुभद्रा कुमारी के साथ वर्ष १९५६ में हुआ था.श्री सिंह के पुत्र हमीर सिंह राजस्थान के सुप्रसिद्ध समाजसेवी राजनीतिग्य एवम साहित्यकार रानी लक्ष्मी कुमारी चुडावत के दौहित्र हैं.राजस्थान पुलिस के पूर्व आईजी पी. बलभद्र सिंह राठौर के हमीर सिंह भांजे हैं.
        इस प्रकार राणा चन्द्र सिंह जी का परिवार पाकिस्तान और भारत के बीच सांस्कृतिक सामाजिक सेतु का काम करता रहा है.
       देश के दुखद बंटवारे के बाद कितने परिवार तबाह हुए कितने लोग अपने परिजनों से बिछुड़ गए. मानवता को कम्पित करने वाली अनेक घटनाएं घटित हुईं,लेकिन राणा चन्द्र सिंह का परिवार और पाकिस्तान में उनका जन सम्मान देख कर भारतीय लोंगों को अवश्य सुखद संतोष होगा. हमारे ऋषियों और महात्माओं ने जिस विश्ववंधुत्व  की कल्पना की थी उसकी प्रासंगिकता आज भी विद्यमान है. अगर विश्व सहज तरीके से सतत और शांति पूर्वक विकास की कामना करता है तो उसे विश्व्वंधुत्व का शाश्वत मार्ग अपनाना ही पड़ेगा.